मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती जी के60 वें स्मृतिदिवस 24जून 2025 पर विशेष लेख

मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती जी के60 वें स्मृतिदिवस 24जून 2025 पर विशेष लेख

मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती जी के60 वें स्मृतिदिवस 24जून 2025 पर विशेष लेख …

ज्ञान और शक्तियों की चैतन्य अवतार ‘मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती’

ज्ञान का प्रकाश जीवन को आलोकित करता है। परन्तु मानवता के इतिहास में ऐसे भी महान विभूति हुए हैं, जो स्वयं ज्ञान का प्रकाश बनकर इस संसार को इतना आलोकित कर देते हैं कि ज्ञान प्रतिमूर्ति के रूप में उनकी स्मृतियां युगों-युगों तक अज्ञानता के तिमिर का शमन करके ज्ञान के प्रकाश से मानव हृदय को आलोकित करती रहती हैं। उनकी उपमा के लिए उपयुक्त शब्द की सामर्थ्य सीमायें समाप्त हो जाती हैं। ऐसी ही भारतीय मनीषा की शिरोमणि प्रतिनिधि, ईश्वरीय ज्ञान की कालजयी अवतार, रूद्र-यज्ञ-रक्षक मातेश्वरी श्री जगदम्बा ने इस धरा पर युगान्तकारी परिवर्तन का संवाहक बनकर हज़ारों ब्रह्मावत्सों के मानस-पटल पर परमात्मा शिव के ईश्वरीय ज्ञान की जो अमिट छाप लगाई है, वह वर्तमान समय में भी लाखों मनुष्यात्माओं के जीवन को आलोकित कर रहा है। ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमात्मा शिव स्वयं शरीर धारण नहीं कर सकते हैं परन्तु मातेश्वरी जगदम्बा के द्वारा परमात्मा ने इस संसार में ब्रह्मावत्सों तथा लाखों मनुष्यात्माओं को मातृत्व की सुखद आंचल की छत्रछाया की पालना देकर अपने ममतामयी स्वरूप को प्रकट किया।

धर्म का सत्य मर्म

आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियों की चैतन्य दिव्य मूर्ति मातेश्वरी श्री जगदम्बा, कर्मयोग की ज्ञान-गंगा बहाकर आध्यात्मिक क्षेत्र में पुरूष प्रधान वर्चस्व के मिथक को तोड़कर सारे संसार को यह संदेश देने में सफल रही, कि आध्यात्मिक पुरूषार्थ और साधना के लिए त्याग, तपस्या और आत्म-अनुभूति ही यथार्थ सत्य है। लिंग-भेद और बाह्य पहचान का कोई महत्व नहीं है। मम्मा ने जिस समय आध्यात्मिक साधना द्वारा अज्ञानता में भटकते समस्त मानव के हृदय को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करने के पथ को चुना था, सन् 1936 का वह कालखण्ड एक नारी के लिए महान साहस भरा फैसला था, क्योंकि उस समय का पुरूष प्रधान समाज धर्म की सुरक्षा के नाम पर नारियों को घर के पर्दे के अंदर कैद करना ही अपना छद्म धर्म समझता था। श्री मातेश्वरी जी ने राजयोग की साधना और सहनशीलता से सारे संसार के सामने धर्म के सत्य मर्म को स्पष्ट किया कि आत्म-अनुभूति और परमात्म-अनुभूति से ही सत्य धर्म की स्थापना होती है, नारियों को पर्दे से ढककर नहीं।
आध्यात्मिक साधना और ईश्वरीय ज्ञान द्वारा अज्ञानता में भटकती दुःखी और पीड़ित समस्त मानव जाति को जीवनमुक्ति प्रदान करने का मम्मा का क्रान्तिकारी फैसला मानवता के इतिहास को बदलने वाली एक महान घटना थी, क्योंकि इसने नारियों के लिए पूर्णतः निषेध कर दिए गए धर्म के प्रवेश-द्वार को नारियों के लिए खोल दिया। उन्होंने अपने दिव्य व्यक्तित्व के चुम्बकीय आकर्षण से हज़ारों नारियों को स्वयं परमपिता परमात्मा द्वारा इस सृष्टि के परिवर्तन के महान कार्य में निमित्त बनाकर जो नव-सृजन की राह दिखाई, वह वर्तमान में भी नारी-सत्ता द्वारा संचालित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के रूप में समस्त संसार को आलोकित कर रहा है।

वीणावादिनी सरस्वती की चैतन्य अवतार

अविभाजित भारत में सन् 1919 में अमृतसर के एक सामान्य परिवार में जन्म लेकर पितृ-स्नेह से वंचित परन्तु आध्यात्म के शिखर को स्पर्श करने की मातेश्वरी श्री जगदम्बा की जीवन-यात्रा बहुत ही प्रेरक है। मातेश्वरी जी के समाधिस्थ होकर उच्चारित ‘ओम् ध्वनि’ में आध्यात्मिक तरंगों का इतना शक्तिशाली प्रवाह होता था कि ‘ओम् की धुनी लगाते ही पूरे वातावरण में गहन शान्ति छा जाती थी। इसके सम्पर्क में आने वाले लोग ध्यान की अवस्था में चले जाते थे। इसलिए मातेश्वरी जी ‘ओम् श्री राधे’ के नाम से विख्यात हो गई। ‘ओम् श्री राधे’ से ‘यज्ञ माता’ के दिव्य व्यक्तित्व के रूप में महापरिवर्तन मातेश्वरी जी के ‘वीणावादिनी सरस्वती’ के चैतन्य रूप में इस धरा पर साक्षात् अवतरण की एक अद्भुत कहानी है।

एक नये इतिहास का सृजन

आपकी लौकिक माता से लेकर बच्चे, युवा, वृद्ध सभी आपको ‘मम्मा’ के नाम से सम्बोधित करते थे और आपने भी ‘यज्ञ माता’ की बेहद दृष्टि से व आध्यात्मिक ज्ञान से सर्व की पालना कर नारी सत्ता के आध्यात्मिक उत्थान की एक नई गौरव गाथा का सृजन कर दिया। मातेश्वरी जगदम्बा के पावन सान्निध्य से प्रेरित हो लाखों मनुष्यात्माओं द्वारा ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमात्मा शिव के नई सतयुगी दुनिया की पुनर्स्थापना के महान परमात्म कार्य में स्वयं को समर्पण करने की घटना इतिहास में अन्यत्र कहीं नहीं मिलती है।

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की आध्यात्मिक त्याग, तपस्या, धारणा और सेवा के क्षेत्र में पूरे विश्व में जो विशिष्ट पहचान है, वह मातेश्वरी श्री जगदम्बा के दिव्य व्यक्तित्व और आध्यात्मिक मार्गदर्शन का ही परिणाम है। मातेश्वरी जी के पावन सान्निध्य में पलने वाली आत्मायें अपने प्रखर साधना और तेजस्वी स्वरूप से वर्तमान समय में अज्ञान अंधकार में भटकती समस्त मानव जाति को परमात्म-अनुभूति की यथार्थ पहचान देकर उनके दिखाये गये साधना के पथ पर निरंतर अग्रसर हैं।

वरदानी दिव्य दृष्टि

आध्यात्मिक साधना के मार्ग में मन और बुद्धि को परमात्मा के ऊपर एक बार समर्पित करने के बाद साक्षीद्रष्टा बनकर ईश्वरीय सेवा में इनका प्रयोग करने के लिए महान आध्यात्मिक विवेक और निरंतर अशरीरी बनकर परमात्म-शक्तियों की अनुभूति करते रहने का पुरूषार्थ आवश्यक है। मातेश्वरी जगदम्बा ने सदा निराकर ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमात्मा शिव द्वारा अपने साकार मानवीय माध्यम पिताश्री ब्रह्मा के माध्यम से दिये गये ‘श्रीमत’ का तत्क्षण पालन किया। मातेश्वरी जी को ‘मनमत’ और ‘श्रीमत’ में अत्यंत सूक्ष्म अंतर को स्पष्ट समझने के लिए ‘वरदानी दिव्य दृष्टि’ प्राप्त थी। यह शक्ति बहुत ही विरले साधकों को प्राप्त होती है।

इस दिव्य दृष्टि के आधार से वे अपने सम्पर्क में आने वाली किसी भी मनुष्यात्मा के अन्दर छिपी हुई विशेषताओं को पहचानकर उसे पत्थर से तराशकर हीरा बना देती थी। वे ईश्वरीय ज्ञान और कर्मों के गुह्य रहस्य को सहज ढंग से स्पष्ट करने की कला में अत्यंत प्रवीण थी। इसके कारण ही उन्होंने स्वयं ‘निर्माण’ और ‘निर्मान चित्त’ बनकर सर्व मनुष्यात्माओं को साधना द्वारा साधक बनकर साधनों को निमित्त भाव से प्रयोग करने का महान पाठ पढ़ाया। मातेश्वरी जगदम्बा द्वारा अपने जीवन में किये गये ‘कर्म योग’ का सफल प्रयोग, लाखों लोगों के लिए गृहस्थ जीवन में ‘जीवन मुक्ति’ प्राप्त करने का सहज उदाहरण बना है। इससे मातेश्वरी जी ने संन्यास की परम्परागत अवधारणा को ही बदल दिया कि स्थूल कार्यों को न करने का संकल्प लेकर जंगल या पहाड़ की गुफाओं या कन्दराओं में जाकर बैठ जाना ही संन्यास और साधना नहीं है। बल्कि सच्ची साधना है- ‘इस संसार में गृहस्थ जीवन जीना’ तथा सच्चा संन्यास है- ‘मन और बुद्धि से पांच विकारों काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार का सम्पूर्ण परित्याग।’ इससे ही संसार में सामान्य जीवन व्यतीत करने वाले स्त्री/पुरूष को आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त होती है तथा समाज में एक बड़ा क्रान्तिकारी परिवर्तन होता है।

कर्म और योग का अद्भुत समन्वय

ब्रह्मा की मानस-पुत्री श्री मातेश्वरी जगदम्बा जी के जीवन में ‘योग’ और ‘कर्म’ के संतुलन का अद्भुत समन्वय था। गीता के अनुसार, राजयोग साधना की यही पराकाष्ठा है। जब किसी साधक की चेतना ‘उच्च पराचेतना’ को स्पर्श कर लेती है, तो ‘योगः कर्मेषुकौशलम्’ की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। ऐसे साधक में किसी भी क्षण अपने संकल्प को ‘शक्ति’ में परिवर्तित करने की क्षमता विकसित हो जाती है। मातेश्वरी जी ने स्वयं परमपिता परमात्मा शिव द्वारा सिखाये गये राजयोग से ‘कर्म योग’ द्वारा ‘जीवन मुक्ति’ प्राप्त करके ‘कर्मभोग’ पर विजय प्राप्त कर लिया था। मम्मा अभय बनकर मृत्यु के भय पर ‘विजयी भव’ का वरदान प्राप्त करके कैन्सर जैसी असाध्य बीमारी के भय को परास्त करते हुए अन्तिम श्वांस तक मानवता की सेवा में तत्पर रहीं। मातेश्वरी जी अपने नश्वर भौतिक शरीर का परित्याग करने के कुछ क्षण पूर्व तक ईश्वरीय ज्ञानामृत की पावन ज्ञान-गंगा बनकर उपस्थित मनुष्यात्माओं को पवित्र बनाने के पुण्य कर्म में संलग्न रहीं।

सच्ची श्रद्धांजलि

24 जून, 1965 को मातेश्वरी जी ने स्वयं को शारीरिक कर्मेन्द्रियों की सीमाओं और बंधनों से मुक्त कर ‘सम्पूर्णता’ को प्राप्त कर महाप्रयाण की यात्रा पर प्रस्थान किया। मातेश्वरी श्री जगदम्बा की सूक्ष्म उपस्थिति आज भी ब्रह्मावत्सों को जीवन-पथ पर अचल अडोल होकर कर्मयोग के लिए प्रेरणा प्रदान कर रही है। मातेश्वरी श्री जगदम्बा जी के दिखाये गये कर्म-साधना के पथ पर चलते हुए राजयोग की साधना द्वारा रूद्र-यज्ञ-रक्षक, आज्ञाकारी और निरहंकारी बनकर मानवता की सेवा में समर्पित रहें, यही हम ब्रह्मावत्सों की उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
ब्रह्माकुमारी पुष्पा बहन जी संचालिका राजयोग सेवा केन्द्र राजनांदगांव

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